Monday, 26 September 2016

चार ही दिनों मे

बस चार ही दिनों मे सबकुछ बदल गया |
रिश्ता बदल गया जब स्वार्थ निकल गया ||
किस पर करें भरोसा अपना किसे कहें |
जिस पर किया भरोसा वो ही फिसल गया ||
बी.के. गुप्ता"हिन्द"
मोब. 9755933943

भोपाल से प्रकाशित मासिक पत्रिका "कर्मनिष्ठा " के अगस्त अंक के पेज 32 मे मेरी रचना "नारी की व्यथा " प्रकाशित हुई



एक ताजा ग़ज़ल

एक ताजा ग़ज़ल
बात करते है वो अक्सर ही वफादारी की |
साजिशें करते है जो लोग गददारी की ||
आजकल होंटो पे मुस्कान भी झूठी है |
बात दिल में है केवल आज लाचारी की ||
सामने आती है जब भी मुशीबत कोई |
फिर परख होती है अपने समझदारी की ||
झूठ लिख जाता सच आजकल रिश्वत में |
जीत होती है देखो आज अत्याचारी की ||
"हिन्द"कहता है अब देखो ज़माने का सच |
बात करता है हर कोई तरफदारी की ||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब.9755933943

१२२२*४ ग़ज़ल

१२२२*४
ग़ज़ल
सजी महफ़िल ग़ज़ल की हो सुनाना अर्ज भी होगा |
ज़माने की हकीकत को बताना फर्ज भी होगा ||
छिपा लेना ज़माने से भले ही तुम गुनाहों को |
गुनाहों का खुदा के पास लेखा दर्ज भी होगा ||
बिना मांगे नहीं मिलता किसी भी दर्द का मरहम |
दवा हो या दुआएँ हो बताना मर्ज भी होगा ||
वफ़ा की राह पर चलना हमें सबने सिखाया है|
वफ़ा के गीत लिखना "हिन्द" का अब फर्ज भी होगा||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब-9755933943

ताजा ग़ज़ल

ताजा ग़ज़ल
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
किसी इंसान का जिस दिन भरोसा टूट जाता है |
भले ठंडी हवायें हो पसीना छूट जाता है ||
घरों में आजकल रिश्ता निभाना हो गया मुश्किल |
जरा सी बात पर देखो घरौंदा फूट जाता है ||
हमें बस डर यही लगता जुदा हम हो नहीं जायें |
जिसे हम प्यार करते हों वही जब टूट जाता है ||
ग़ज़ल में "हिन्द" ने लिख दी हकीकत आज की देखो |
अगर खुद को नहीं बदलें जमाना छूट जाता है ||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब.9755933943

इंसान आजकल का

इंसान आजकल का वफादार नहीं है |
मिलती उसे सजा जो गुनहगार नहीं है ||
ये जिंदगी मिली है तुझे चार दिनों की |
बेकार जिंदगी है अगर प्यार नहीं है ||
इंसाफ का जमाना बदल आज गया है |
अब झूठ और सच भी चमकदार नहीं है||
अब घर मकान भी ये हवादार बने है |
पर आजकल झरोखे हवादार नहीं है ||
अब "हिन्द" कह रहा है जरा देख गुजर के |
सब चाय तो पिलाते मगर प्यार नहीं है ||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब-9755933943

ग़ज़ल-"बेवफा प्यार"

ग़ज़ल-"बेवफा प्यार"
मैंने जिसे प्यार सुब्हा शाम लिखा है |
उसने मुझे मौत का पैगाम लिखा है ||
जिसके लिए हम वफ़ा की राह चले थे |
उसने मुझे आंसुओं का जाम लिखा है ||
हर इक सजा प्यार की मंजूर मुझे थी |
मेरी वफ़ा का दर्द मेरे नाम लिखा है ||
करना नहीं बेवफा से प्यार कभी तुम |
यह "हिन्द" ने प्यार का अन्जाम लिखा है||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब-9755933943

चाहा था जिसको

चाहा था जिसको हमने बेवफा हो गया |
गैरों से मिलके हमसे वो खफा हो गया ||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"...

२१२ १२२२ २१२ १२

२१२ १२२२ २१२ १२
प्यार कम मिला ये मेरा नशीब था |
दूर था भले पर दिल के करीब था ||
प्यार था उसे भी सब जानते मगर |
कर दिया जुदा मै लड़का गरीब था ||
दे रहा दुआ मै खुश रब उसे रखे |
ले गया उसे जो मेरा हबीब था ||
"हिन्द" को जुदा कर शायर बन दिया |
याद कर लिया फिर मेरा नसीब था ||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब-9755933943

212*4

212*4
प्यार का गीत कोई सुना कीजिये |
प्यार से मुस्कुरा कर मिला कीजिये ||
प्यार सबको मिले अब है चाहत यही |
दिल न टूटे किसी का दुआ कीजिये ||
प्यार करना नहीं था मगर कर लिया |
गर खता है यही तो सजा कीजिये ||
आजकल हो खफा बात क्या हो गयी |
बात दिल की कभी तो सुना कीजिये ||
आज खत लिख दिया आपको प्यार में |
"हिन्द" से भी कभी तो मिला कीजिये ||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब-9755933943

चलो अब प्यार से

चलो अब प्यार से जीने का रस्ता बनाते है |
वफ़ा अब साथ रखने का एक बस्ता बनाते है ||
बदल जाता नहीं रिस्ता कितना दूर हो कोई |
चलो हम आज रिस्तो का गुलदस्ता बनाते है ||
अगर दिल से मिले हो दिल हाथों को मिलाना क्या |
गमो को दूर करने का अब रस्ता बनाते है ||
जहां सब साथ रहते हों मिलकर हिन्द के बेटे |
चलो अब "हिन्द" की बातों का दस्ता बनाते है ||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब-9755933943

ग़ज़ल-"बेवफा प्यार"

ग़ज़ल-"बेवफा प्यार"
मैंने जिसे प्यार सुब्हा शाम लिखा है |
उसने मुझे मौत का पैगाम लिखा है ||
जिसके लिए हम वफ़ा की राह चले थे |
उसने मुझे आंसुओं का जाम लिखा है ||
हर इक सजा प्यार की मंजूर मुझे थी |
मेरी वफ़ा का दर्द मेरे नाम लिखा है ||
करना नहीं बेवफा से प्यार कभी तुम |
यह "हिन्द" ने प्यार का अन्जाम लिखा है||