Friday, 29 April 2016

२ मई २०१६ दिन सोमवार को सुबह १०:०० बजे आकाशवाणी छतरपुर म.प्र.

२९ अप्रैल २०१६ को सरस्वती शिशु मंदिर बड़ामलहरा में रात्रि ८:०० बजे श्री मनोज तिवारी जी द्वारा मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमे आकाशवाणी छतरपुर म.प्र. से आये श्री अरवाज खान जी द्वारा सबरंग कार्यक्रम के लिए रिकॉर्डिंग की गयी जिसमे आप के मित्र बी.के.गुप्ता"हिन्द" की ग़ज़लें भी रिकॉर्ड है जिसका प्रसारण २ मई २०१६ दिन सोमवार को सुबह १०:०० बजे आकाशवाणी छतरपुर म.प्र. से किया जायेगा |

गीत -"क्या जाने "

गीत -"क्या जाने "
प्यार नहीं है दिल में जिसके ,प्यार वो करना क्या जाने |
दिल ही जिसका काला है ,ऐतबार वो करना क्या जाने ||
१-देश -धर्म की बात भी जो स्वार्थ में अपने करते है |
उनका न किसी से नाता है, खुद के मरने से डरते है ||
जिनके हर वादे झूठे है ,ईमान की कीमत के जाने |
प्यार नहीं है दिल में जिसके ,प्यार वो करना क्या जाने ||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"

वफ़ा की तलाश में

वफादार बन गए हम वफ़ा की तलाश में |
जहर भी मिला नकली दवा की तलाश में ||
जिए जा रहे है आज भी इन्तजार में |
कभी घर से वो निकले हवा की तलाश में ||
ज़माने ने भी हमको गुनहगार कह दिया |
निकल घर से जब आये सजा की तलाश में ||
समां प्यार की जलती अगर रोज शाम को |
भटकता न परवाना समां की तलाश में ||
सजा प्यार की महफ़िल अगर प्यार है तुझे |
चला "हिन्द" भी आया पता की तलाश में ||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
आशिक कहा ,पागल कहा, अवारा कह दिया |
फिर आज मुझको देख कर बेचारा कह दिया ||
इल्जाम सारे प्यार के मेरे सर लिख दिये |
क्यों आज तूने बेवफा दुबारा कह दिया ||
तिरछी नज़र से देख मुस्कुरा के चल दिये |
इस प्यार की मुस्कान को प्यारा कह दिया ||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"

ग़ज़ल-"अपने वतन में"

ग़ज़ल-"अपने वतन में"
आती न अगर याद वफ़ा अपने वतन में|
रखते न जफ़ा नाम तेरा अपने वतन में ||
करते न अगर प्यार तुझे प्यार से मिलके |
आती न तेरी याद सदा अपने वतन में ||

गम भी न मिले प्यार में की जाम पिलाते |
हस भी न सके रो न सके अपने वतन में ||
भूली न भुलाने से तेरी याद ए मुझ को |
मै नाम तेरा लिखने लगा अपने वतन में ||
अब हिन्द का दिल भी न रहे प्यार से खाली |
अब "हिन्द" करे प्यार वफ़ा अपने वतन में ||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"

गीत-"रिश्वत की जुबानी"

गीत-"रिश्वत की जुबानी"
सत्ता के नाम रिश्वत भत्ता के नाम रिश्वत |
विदेशों में जमा है काले-धन के नाम रिश्वत ||
१-रिश्वत भी कह रही है कब तक चलूंगी मैं,
चलती हूँ हर जगह क्यों थकती नहीं हूँ मैं |
चलती रहेगी कब तक इस देश में रिश्वत ,
सत्ता के नाम रिश्वत भत्ता के नाम रिश्वत ||

२-चलती हूँ लिफाफों में मैं उपहार की तरह,
आती हूँ चली जाती हूँ बहार की तरह |
कहने लगे हैं लोग मुझे आज की किस्मत,
सत्ता के नाम रिश्वत भत्ता के नाम रिश्वत ||
३-मुझको लेने-देने वाले अब नहीं है कम,
आने से मेरे खुशियां है जाने से मेरे गम |
कहने लगे है लोग मुझे प्यार से रिश्वत ,
सत्ता के नाम रिश्वत भत्ता के नाम रिश्वत ||
रचनाकार-
बी.के.गुप्ता"हिन्द"

ग़ज़ल-"वफ़ा की राह"

ग़ज़ल-"वफ़ा की राह"
1222 1222 1222 12
वफ़ा की राह में तन्हाईया भी मिलती है |
गमो के साथ में शहनाईयां भी मिलती है ||
करें जो प्यार तो ये चूड़ियाँ भी बजती है |
तभी तो प्यार में बदनामियाँ भी मिलती है ||
गमों में प्यार की हम लोरियां भी लिखते हैं |
पढ़ो एकबार तो गहराईयां भी मिलती है ||
खफा तो आजकल एक दूसरे से हैं सारे |
तभी तो हर जगह खामोशियां भी मिलती है ||
वफ़ा के नाम से अब हमको भी डर लगता है |
यहाँ तो इश्क में रुसवाईयाँ भी मिलती है ||
कहा है"हिन्द" ने ग़ज़लों को अपनी भाषा में |
सुनो तो प्यार की सच्चाइयां भी मिलती है ||
रचनाकार-
बी.के.गुप्ता"हिन्द"

"नहीं मिलता "

"नहीं मिलता "
विश्वाश के काबिल जब इंसान नहीं मिलता |
पत्थर ही पूजा जाता है भगवान नहीं मिलता ||
पत्थर की मूर्तियों से संवाद अगर होता |
मंदिर की मूर्ती को रब का नाम नहीं मिलता ||

खुद अपने दिल की पूजा इंसान अगर करता |
हर दर पे मिलता रब तू परेशान नहीं मिलता ||
दो प्यार करने वालो को प्यार अगर मिलता |
यह प्यार का रिस्ता भी बदनाम नहीं मिलता ||
इस देश में संतो को भगवान कहा जाता |
दिल में अगर संतो के हैवान नहीं मिलता ||
रचनाकार -
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब-9755933943

ग़ज़ल -"खुद ही मिट जायेंगे"

ग़ज़ल -"खुद ही मिट जायेंगे"
खुद ही मिट जायेंगे वतन मेरा मिटाने वाले |
मर के भी जिन्दा है वतन पे जां लुटाने वाले ||
पानी के लिए उनको तड़पते भी देखा है हमने |
मर जाते है प्यासे ही गरीबो को सताने वाले ||

दिख जाते है संग में अगर दो प्यार करने वाले |
आते है कानो में जहर भरने ज़माने वाले ||
इस दौलत में तुझको कई अपना बताते होंगे |
दौलत में मिलते प्यार झूठा ही दिखाने वाले ||
मज़बूरी में हम प्यार तुझसे कर न पायें शायद |
कैसे समझेंगे बेवफा हमको बताने वाले ||
दुश्मन के आगे "हिन्द" का सर झुक नहीं सकता है |
दुश्मन का सर धड़ से उड़ा देंगे झुकाने वाले ||
रचनाकर-
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब-9755933943

Friday, 1 April 2016

गीत -"अंग्रेजी की शान"

गीत -"अंग्रेजी की शान"
अपनी हिन्दी भूल गए हम, अंग्रेजी की शान में|
हैलो,हाय,और बाय कर रहे, लोगों से सम्मान में | |
१-शिष्टाचार,सभ्यता, भूले भूल गए हम मर्यादा,
अब न बच्चे कहना मानें, हो गए समझदार ज्यादा |
भूल गए रिश्तों की अहमियत ,दौलत के अभिमान में,
अपनी हिन्दी भूल गए हम, अंग्रेजी की शान में||
२-भूल गए प्रणाम ,नमस्ते ,करना अपने माँ-बाप से ,
.हैलो डेड ,और डियर मोम ,बच्चे कहते माँ -बाप से |
खुले जिस्म का फैशन फैला ,देखो इस जहान में ,
अपनी हिन्दी भूल गए हम, अंग्रेजी की शान में||
३-फ़ैल रही है नफरत देखो ,सोच हुई है अब छोटी ,
शर्मसार है हर रिश्ता जब ,नीयत हो गई है खोटी |
महफूज नहीं है बहन-बेटियाँ, अपने घर मकान में ,
अपनी हिन्दी भूल गए हम, अंग्रेजी की शान में||
४-इंटरनेट ,मोबाइल ,टी.वी.अब हर घर की शान है ,
वियर और विस्की के प्यालों से ,अब होता सम्मान है |
"हिन्द"की हिन्दी मत भूलो तुम ,अपने हिंदुस्तान में ,
अपनी हिन्दी भूल गए हम, अंग्रेजी की शान में||
रचनाकार -
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब-9755933943

एक मतला दो शेर -

एक मतला दो शेर -
सच नहीं बदलता है फूट के आगे |
एक सच है भारी सौ झूठ के आगे ||
गुनाह हो रहा है रिश्वत के नाम पर |
रो रहा गरीब शूट-बूट के आगे ||
क्या पता था प्यार हमें मिल न सकेगा |
घर ही विखर जायेंगे टूट के आगे ||
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब-9755933943

ग़ज़ल -"करने लगे हम प्यार"

ग़ज़ल -"करने लगे हम प्यार"
कैसे करें इजहार तुम्ही से तुम्ही से |
करने लगे हैं प्यार तुम्ही से तुम्ही से ||
नजरें मिली हैं जिस दिन से तुमसे |
ऑंखें हुई हैं चार तुम्ही से तुम्ही से ||
जब से मिली तेरे सांसों की खुशबू |
महकता हैं गुलजार तुम्ही से तुम्ही से ||
करते हैं प्यार कितना पूछो जरा तुम |
दिल के जुड़े हैं तार तुम्ही से तुम्ही से ||
झूठा न करना प्यार कोई किसी से |
"हिन्द"करता रहे प्यार तुम्ही से तुम्ही से ||
रचनाकार -
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब-9755933943

क्या करेगा जमाना,

प्यार करने वालों का क्या करेगा जमाना,
आज फिर से दर पे तेरे आया तेरा दिवाना l
तू चाहे दे सजा मुझको चाहे करदे परवाना,
आज साथ लेकर तुझे जायेगा ये दिवाना ll
बी.के.गुप्ता"हिन्द"...
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गीत -पर्यावरण

गीत -पर्यावरण 
हो रहा विनाश जिसका चारो तरफ है |
वह पर्यावरण आवरण चारो तरफ है ||
१-वृक्ष काट काट कर रोक दी वारिश,
कैसे बनेंगे बादल सूखा पाताल है |
पड रहा अकाल सूखा चारो तरफ है ,
हो रहा विनाश -----------------
२-तू चाहता अगर है जीवन बना रहे ,
लगा दे अपने चारो तरफ पेड तू हरे |
मिलेगी तुझको ताजी हवा चारो तरफ है ,
हो रहा विनाश -----------------
३-जब गंदगी नदियों में बहायेगा न कोई ,
शौचालय अपने घर में बनाएगा हर कोई |
मिलेगा साफ पानी सबको चारो तरफ है ,
हो रहा विनाश -----------------
४-पर्यावरण की अपने करो मिलके सुरक्षा ,
शासन ने चलाया है अभियान स्वस्छता |
यह "हिन्द" का संदेश फैले चारो तरफ है ,
हो रहा विनाश -----------------
रचनाकार-
बी.के.गुप्ता "हिन्द"
मोब-9755933943