Friday, 29 April 2016

ग़ज़ल -"खुद ही मिट जायेंगे"

ग़ज़ल -"खुद ही मिट जायेंगे"
खुद ही मिट जायेंगे वतन मेरा मिटाने वाले |
मर के भी जिन्दा है वतन पे जां लुटाने वाले ||
पानी के लिए उनको तड़पते भी देखा है हमने |
मर जाते है प्यासे ही गरीबो को सताने वाले ||

दिख जाते है संग में अगर दो प्यार करने वाले |
आते है कानो में जहर भरने ज़माने वाले ||
इस दौलत में तुझको कई अपना बताते होंगे |
दौलत में मिलते प्यार झूठा ही दिखाने वाले ||
मज़बूरी में हम प्यार तुझसे कर न पायें शायद |
कैसे समझेंगे बेवफा हमको बताने वाले ||
दुश्मन के आगे "हिन्द" का सर झुक नहीं सकता है |
दुश्मन का सर धड़ से उड़ा देंगे झुकाने वाले ||
रचनाकर-
बी.के.गुप्ता"हिन्द"
मोब-9755933943

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